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आत्मज्ञान: स्वयं को पहचानना एवं भगवन् के साथ मेल खोलना भगवान

आत्मज्ञान: स्वयं को पहचानना एवं भगवन् के साथ मेल खोलना

भगवान म्हारी जागृति करो,
मुझे मेरे असली रूप से मिलवाओ।
मैं आपकी सदैव धुन्धली लौ में हूँ,
अपने सही आंतरिक स्वरूप को खो बैठा हूँ।

सब कुछ यहां है, भगवान के दरबार में,
मनुष्य का जीवन नहीं है व्यर्थ में।
अनुभव का तो एक सुंदर आभास है,
बाहरी चमक, जो वह छोड़ चुका है।

सच्चाई का साथी है स्वयं आत्मा,
इसे ढूंढ़ने के लिए करो इंतजार।
नैतिक मूल्यों का भी भरोसा रखें,
स्वयं का ज्ञान पाने की कामना रखें।

क्या है इस दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण?
क्या है हमारी सच्ची पहचान का अड़ंगा?
यह जगत है माया से भरा हुआ,
सच्ची खुशियों को तब तक भुलाता जाता है।

प्रेम, शांति अथवा प्रकाश को हम पाना चाहते हैं,
पर मन में मध्यस्थता की जगह लेते हैं।
आँतरिक शांति और आदर्श खो दिए हैं,
अच्छा नहीं लगता है अब स्वयं में विचार।

स्वयं को पहचानो और ताकत दोगे स्वयं को,
जो सच्‍ची जागृति पैदा करेगी आंतर अन्तरों।
मोह मुक्ति की सत्यता को आज स्मरण करो,
और विघटों के रास्ते को आज चाहो।

ये ब्रह्मांड एक अनंत ज्ञान का सागर है,
तुम्हारे पास ज्ञान लेने का समय है।
जीवन की नई परिभाषा का निर्माण करो,
और ब्रह्मा जी के साथ मेल खोलो।

इस आराधना को शुरू करो,
अपने अस्तित्व को आंतरविद्या से संयमित करो।
अद्वैत और प्रभूत्व की अनुभूति करो,
लक्ष्य की ओर ध्यान और सर्वव्यापीता बनाए रखो।

जब तुम सपनों में सोते हो,
तब भी भगवान् के संकेत समझो।
सच्‍चा निर्माण खुद व्यक्तिगत ढंग से करो,
और सुकूं तथा शांति की ओर वर्धित हो।

इस रोशनी की धूप में खुद को झांकते हैं,
और सभी रास्ते आत्मज्ञान को देखते हैं।
तुम स्वयं की पहचान एवं उद्यम को जानो,
और दूसरों की आत्मा को महसूस करो।

जगत की एकता को संवारने के बाद,
अपने कर्तव्यों को निभाने की बारी है।
शांति का पेड़ बढ़ाओ, प्रेम की डाल छोढ़ो,
और ध्यान का विकास करने का निर्णय लो।

सब धर्मों में एक अद्वैत मूर्ति,
सृष्टि का मूलतत्व है यह सच्चाई।
अंतर्मुखता और प्रेम की आदत हो जाए,
और ब्रह्मा जी का ध्यान हर लम्हे करो।

आंतरिकता और पारंपरिक प्रेम को जीवित रखो,
भगवान् के साथ अपना नित्य जीवन जियो।
तुम्हारी आत्मा से जुड़ा तंत्र है यह धर्म,
तो करो सदैव निर्माण और संशोधन।

स्वयं के नीचे की गहराई तक खुद को खोजो,
और अस्तित्व के चरम चिंतन में खो जाओ।
भगवान् की ओर संकेत की दृष्टि रखो,
और अद्वैत को आपात मानो।

जो सोते हैं वही जागते हैं,
पर जो सोते हैं वही जगाते हैं।
तुमको आत्माराम भगवान् का निवास स्थान मिले,
और सनातन ज्ञान का ऊर्ध्वमुखी प्रवाह मिले।

आओ, स्वयं की खोज में जाएं,
रूपांतर पाएं और परिवर्तन को अनुभवें।
स्वयं का मंदिर सन्देश से सजाएं,
और आदर्शों को समझो तुम आने वाले ध्यान।

मन को ठंडाई और स्पष्टता अर्पित रखो,
और अपनी उपासना को शुरू करो।
तुम एक होगए हो अनंत सत्य से,
और दूसरों की आत्माओं को शरण दो।

चिंता आती है, मन को शांत करो,
रोज़ाना ध्यान का समय मंगाओ।
भगवान् से संधि मठ बनाओ,
और तुम्हारे भरोसे को सम्पूर्‍ण रूप से सौंपो।

कागा जी

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