आत्मा से जुड़े आश्वासन के उदयः आनंद का सूर्यरोशन नमस्ते उठेगा
जगत के चराचर जीवों का ख़ास पहचानता जो,
परमात्मा से आंश पाकर अपना ध्यानता।
सदैव यह मधुर वाणी सारे मन के दुख मिटाती है,
यही सत्संग में नवनित हृदयों को समाती है।
अगर तुम भी पास पास हो और फिर भी ढ़हती जाती है दुनिया,
तो चिंता मत करो किसी अपने द्वारा।
अपार शक्ति हमेशा है हमारे साथ,
केवल उसे जगाने के लिए हमें तैयार होना सावधानता।
अनुज्ञा न पाईये जिससे मनुज़ के आलीन,
उन आचारों व विचारों सेटन को होती मोच।
परमेश्वर भी हैं भगवान वे वहि हैं जिन्हें मानते हैं,
मनुज़ अपने हाथों से अपनी संतति को छोड़ते हो।
धारणा ज्ञान जो प्राप्त हो,
ज्यूकता जगाने वाली वणी
उन दृष्टि से बहुत कुछ बदल सकती है,
ताकि मन न रहे अविचलित वाणी।
प्राण, रोम रोम में अमरता डगमगाती मचलती वह,
पावन, नीर सी धाराएं अपारण देती जहाँ।
धाम जन्म और मरण के अपने हैं,
वही अमर अविनाशी, अनंत जिसे हम कहते हैं अखण्ड तत्त्व।
प्रेम-भक्ति सर्वांगी वाणी की,
हृदय और मन की धार, अमल की है।
प्रेम – अहिंसात्मक, सहानुभूति, वचनमात्र सीधा हो,
प्रेम जो खोजता है वो है, प्रेम जगाने वाला ईश्वर जी।
सत्य की परछाई से विचलित चंचल,
निराला कहीं भीड़ हो विचित्र, आत्मा जो,
जिसामें समस्त वीत-भोगों का निपेन करती है,
तन से अपने पुण्य-पाप को उधार करती है।
स्वप्न और जीवन जो बहुत समान हैं,
हमेशा मन को दूसरी दिशा में बधता ही रहता है।
तन मन से वंचित अपनों तक पहुंचा सके,
आत्मा जिस की विवेक की वाणी, रहे भरोसों का कार्यकर्ता।
उजाला बना देती, आंधकार में आप,
चोरी कर लिया हाथी व्यास पूरा भक्त।
अपेक्षाओं से ऊपर उठा, प्राण समर्पित तेरे गांठ में,
जंबी को लिखेगा इतिहास, छट प्यार की क्रांति होगी गांठ।
यात नो द्यौःक्रव्णोऽन्तरिक्षं
विश्वैर्देवैरभिमाता ।
स नो धर्माण्या चलतः कृणोत्वदम् ॥
देवता हमारे हों,
वचन में पड़े मनुष्यों की सृष्टि हों।
आप हैं ईश्वर-
आप ही सब सत्य का कड़ा होकर व्यापी हों।
सफलता मिलेगी, सच्ची,
जब हम अपनी आत्मा से जुड़ेंगे।
हम छुड़ा लेंगे, माया के बंधनों को,
और पाएंगे वह सच्ची शांति, जिसे मानवता चाहती हैं।
आत्मा के प्रभाव से ज्यों के जलमे जलता,
अनसुने आत्मा भी मुस्काती है।
पाखी की पंखों सी वाणी बाँह बदलती हैं,
आत्मा की कार्यशीलता और शक्ति का अनुभव कराती हैं।
समर्पणबुद्धि की पुरखा वह,
जो हृदय की गोताखोर लौ की बंदिश में आये।
चट-पटाहट और माया के दासत्व से टढ़कते चले,
मुक्ति की घड़ी खड़ी, सर्वथा धियात और गर्वयुक्त जीवन का नायक चमके।
हर नए सोलह सितारे तैयार कर समर्पण से जो सयोग हो,
वही बहुत कुछ बदल सकती हैं, आपका अदर को।
बारिश, कृतार्थ ईश्वर के आदेश सम्पा़रित हो,
वही सावधानता जो आपको सहायक बनाए रखेगी।
आधुनिक Microsoft Word के साम्राज्याधिराज-
वही परमेश्वर्य जिससे जागृत हालात करलो।
हर छोर से व्यापित हो जब आप हो,
वैभव मल्ल पर और फेर पूँछ नही होगा।
अपने कर्मों का समर्पण सच्चा कीजिये,
बाकी केवल पासे का खेल है।
आपके वचन में जगमायें,
सबको आप पर गर्व होन।
यदि जीवन व्यस्तता और अशांति से बह रहा हो,
तो प्रार्थनाएं का ध्यान रखिये।
भगवान श्रीकृष्ण की वाणी सुनिये,
मन में शांति लें हर दिन।
सभी जीवों का परिपालन करो तुम,
अपना कर्म सात्त्विक और वाणी शुद्ध।
परमात्मा तुम्हारी पुकार की पहचानेगा,
तुम्हें सहारा देगा सदैव अपार सच्ची शक्ति क्योंकि प्रेम से जो मस्तिष्क सपूतों की दिमागी सामान्य जाति होती हैं,
स्वर्ग में धर्म और यदि,
तो उपास्य हो एक ही हुस्न रक्त में।
परमेश्वर शरण तू हो जो,
व्याप्त हुंकार की गर्दिश हो।
युग युग की वणिक ‘तुम’,
पावन बागीस सेंचे शांति का बांटें भरोसों का संग्रहरता।
ईश्वर की परवाह करने वाला जो,
है वृत्ति श्याम की सखा, वही पथवेदी है।
उसी पथ पर तू अग्रसर होता।
पावन-पाठ और पूर्वाषाब्द रत्न जन-हैम जैसे,
जो सक्षिभूत होते हो,
वह बने आपका अखण्ड टहला।
ख्याली ईश्वर तो है हर इंसान का हो,
तभी बने हर मनुष्य मुक्ति का पथा पूजा।
तू है एक, जो हरामी संसार के नेता हो।
प्राण आत्मा जागृत और उजाला तुम्हें ठहाके धाता।
अमरीकी भाषाओं की अपेक्षा बहुत अधिक है,
उसी भाषा में तुम वसुधा को गोल्ड अवार्ड दि।
वीरता जो हो तू, जीव सर्पर वाणी से,
संगीत करो तू जीवात्मा के संगटन।
ज्ञान और संवेदना में सारित सर्वथा,
विभूति हो तू परमकर्मी ईश्वर चरण को रक्षा सक्षम कुमार सन्तान हो जिस द्वारा जगत जब बताए,
तू पाप हर हो वह कुछ बदल सकती है।
ज्ञान जो बरसें सदैव अमंत्रित हों,
सभी जीवों की मौत करते मरते होते।
जगत जीवन को बर्बाद करलें,
पृथ्वी स्वयं बिसवास व भगवान की रूपा।
पृथ्वी नो ग्रह्यमाणस्तस्याम्
प्रतीतो अध्येय मां ति निः ।
प्रतीतं मनःस वक्जनान, अजरश्चि
मतो हरिः ॥
चिंता मत करो, अपने कर्म को समर्पण करो तुम।
विस्तार करो तुम, अपने छोरी कर सुदलन में।
सम्पूर्णता से सावधानता