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क्रोध का रिश्ता आधे घंटे से ज्यादा हो गए थे लेकिन

क्रोध का रिश्ता

आधे घंटे से ज्यादा हो गए थे लेकिन थोड़ी भी धूप और ऊब नहीं घटी थी. लोगों की चित्ती आग सी जल रही थी. शहर के बाजारों में भी शोर ही शोर था. साइकिल वालों की भीड़ में गाड़ियों और ऑटोवालों का प्रवाह जारी था.

राजन कुहां में जब भुवनेश्वरी ने अपनी आँखें खोलीं तो सीधे आसमान की तरफ उठ गयीं। देखा कि अभी तक सूरज घरों की छतों तक नहीं पहुँचा है। अँधेरे में जैसे ही वो कानों से ऐहसास हुआ नयी सुबह के आने का, उसने तुरंत अपने बच्चे पर ध्यान दिया।

“उठो बेटा, अभी तुम्हें स्कूल के लिए निकलना है,” उसने बिना कुछ सोचे बोल दिया।

“नहीं आई माँ, आज मुझे कल्पना में मैदान में हाथापाई करता नज़र आ रहा था,” बेटे ने रुक टोक करहवाया।

“मेरी बच्ची, तुम मेरी नींदों का मुखाउटा बनते जा रहे हो,” माँ ने प्यार से कहा।

बेटे ने कुशलता के साथ अपना बाइक मोड़ियाते हुए घर से बाहर निकला। साइकिल से जब वो घूमते हुए सड़कों पर निकला, तो सीधे प्रकरणों की तरह उनके दिमाग में उस दिन मैदान में पासी सेना बनने का इरादा अपना लिया था।

घर में होते हुए भी, कुछ ऐसा लगता था कि वो अपने अंदर नए सपनों को हर संभव प्रयास करेगा साकार करने की कोशिश कर रहा है। उसके जहन में लेखक बनना होता था। उसके सपनों में हर शब्द, हर अलफाज ठीक से संरचित सार्थक बन जाते हुए आते नज़र आते थे।

लेकिन पण्डुरंग अधिग्रहण के पीछे छुपी पूरी आत्मा के साथ काम कर रहा था। धुंधली आँखों से वो कल्पना में भी यह नहीं देख पाया था कि कोशिश से कोई जीता है। अधिग्रहण से पासी सेना में शामिल होने के सिवा उसके लिए कुछ और सोच ही नहीं था।

वैशाली ने अपने काम में उलझते हुए हमेशा कुछ नया करने की कोशिश की। काम के साथ अधिक वेकेशन नहीं बनता था। वो पुराने जस्तव में नहीं अपितु ताजगी के रूप में तथाकथित लड़कों से अलग होने का जुनून करती थीं। उनमें इस बात का विश्वास था कि वे अपने क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकती हैं। लोग समझते थे कि वह अपने समय को गुजारती होगी किस सबजे में उन्हें ज्यादा मज़ा आता होगा।

धीरे धीरे जब अप्रसन्न शीत बहुत आसानी से आ गई तो लगता था कि मौसम ने उनकी सीढ़ी मे चढ़ने के लिए नेतृत्व इरादा किया था।

लेकिन सीट पर बैठने के बाद उनके कथनों का कोई असर नहीं हुआ। समझ में नहीं आया कि सारी तहरीक़त उनकी श्रमिकता से किये बगैर कैसे संभव है। लड़ाई के भय से तनाव में आ चुकी उन्होंने झोपड़ियों की चोट से पुछा कि ,

“क्या हमारे बिजली का कोई खाता नहीं हरा है?”

झोपड़ियों के निवासियों में से एक ने अपने सोलर बोट को जोरदार थप्पड़ मार दिया।

सब आपस में सन्देह के साथ एक-दूसरे को देख रहे थे। एक बच्चा जोर से चीख उठा।

“माफ करना मैंने सुबह को फट्टू कर दिया था,” उसने माँ से कहा।

माँ ने उसके सिर पर हाथ रख कर कहा, “कोई बात नहीं बेटा, जब तुम्हें कुछ सही नहीं लगता है तब आप इसे माँ पर नहीं निकालते हैं।”

सब हंस पड़े।

आत्मा मूक हो चुकी थी। उन्होंने ये भी सोचा कि इस समय उन्हें कुछ सोच नहीं सकता चाहे वो कितना ही जोर-शोर से कुछ कहे। तब वेली उनके काम में कुछ गडबड हुआ फिर उन्हें उनके निजी लाइफ में भी समस्याओं से जुझना पड़ा।

कुछ महीनें तक उन्होंने काम करना तथा घर में ज्यादा समय दे देना कोसिस की।

इतनी भी खामोशी कि लगता था कि आत्मा ह्रास ही हुई है। वे अधिक बोल नहीं पाए क्योंकि लोगों के साथ ऐसे हुए संबंध उनसे दूर रहते थे।

सफलता और उसके संबंध में विश्वास जैसे कोई प्यार या चाह, एक अजीब परिचय था। अभी उन्होंने ये सीखा था कि सारी ताकत एक लक्ष्य के आसपास जुटी रहती है।

कागा जी

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