Title: बेटी की आज़ादी
एक छोटे से गांव में एक गर्भवती महिला रहती थी। उसका नाम नीलम था। नीलम बहुत खुश थी जब वह जानकारी प्राप्त की कि उनके गर्भ में एक बेटी है। जिस दिन नीलम ने पहली बार उसकी हलकी हलकी हंसी सुनी, उसे अपने बच्ची के प्रति गहरा प्यार हो गया।
लेकिन गांव में सभी लोग बेटे की मांग करते थे। यह परंपरा बहुत पुरानी थी और लोग नहीं चाहते थे कि उनका गोत्र और उनकी संपत्ति नष्ट हो जाए। कुछ लोगों ने नीलम को बेटा होने का विचार दिया, लेकिन जब वह जानकारी प्राप्त करने के लिए जांच कराई तो उन्हें एक बात पता चली कि बच्चा एक बेटी ही होगी।
बेटों की मांग करने वाले लोगों ने नीलम को निराशा देने के लिए उसे दबाव दिया और उसे बेटी के लिए तलाक़ दे दिया। नीलम बहुत दुखी और निराश हो गई। उसके पास कोई विकल्प नहीं था, उसे अपनी बेटी के लिए अकेला ही लड़वाना पड़ता था। लेकिन वह नीलम था! वह हर मुश्किल को ताल चढ़ा सकती थी।
नीलम ने अपनी आँखें पोंछी और एक साहासी निर्णय लिया। वह अपने पिता के पास गई और उनसे गर्भ में पल रही बेटी के लिए दबाव कम करने की गुजारिश की। नीलम अपने पिता को यकीन दिलाती थी कि उसकी बेटी उसके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होगी और वह उसे सम्मान और स्वतंत्रता से पालेगी। उसने उन्हें विचार करने को कहा – क्या अच्छा होगा अगर हम सभी को आपकी बेटी के लिए गर्व हो जाएगा?
पहले तो नीलम के पिता को यह विचार बहुत अजीब लगा। लेकिन उसके द्वारा दिया गया धीमा प्रभाव उसकी ओर आकर्षित करने लगा। नीलम ने दिखाया कि वही समय है जब स्त्री-पुरुष में कोई अंतर नहीं होनी चाहिए और बेटी समान मुद्दों की बढ़ती अवश्यकता को पूरा करती है।
उसके विचारों में इन्हीं कारणों से नीलम के पिता ने अपना मन बदल दिया। उन्होंने नीलम का समर्थन किया और उसे बेटी के लिए अपने पिता की भूमिका को अद्यतन करने की इच्छा दिखाई। उन्होंने लोगों को बताया कि उनकी बेटी उनकी आशीर्वाद है और उसे इस राज्य में आज़ादी के अधिकार की जरूरत है।
नीलम के पिता के इस निर्णय से सभी गांव वासियों को बड़ा मानवीय संदेश मिला। उनकी बातों ने लोगों को समझाया कि सबकी मानसिकता में बदलाव आवश्यक है और समानता और आज़ादी के अधिकार को प्राथमिकता देनी चाहिए।
नीलम ने अपनी बेटी को जन्म दिया और उसे नाम दिया “स्वर्णा”। स्वर्णा नाम को कहानी के प्रमुख पात्र की मातृभाषा से लिया गया था, जो भारतीय महिलाओं के लिए सम्मान का प्रतीक है।
स्वर्णा की प्रगति और सामरिकता सभी को आश्चर्यचकित कर दी। उसने अपनी शिक्षा पूरी की और एक प्राधिकारी के रूप में बात बनाई। उसने अपनी जिंदगी में नारी सशक्तिकरण की दृष्टि ले और दिखाया कि वह बेटी कोई सपना नहीं होता है, वह हक़ीक़त है।
अब स्वर्णा ने अपने गांव के लिए राष्ट्रीय सेवा में काम करने वाली पहली औरत के रूप में नाम किया गया है। हर कोई उसके पिता को धन्यवाद देता है और नीलम को नसीबवाला मानता है कि उसका सपना सच हो गया है।
इस कहानी से हमें यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं के बेटे हो या बेटियाँ, उनमें एक सामरिक और प्रतिभाशाली बुद्धि छुपी होती है। हमें ध्यान देना चाहिए कि हमेशा अपने बच्चों की सपनों का समर्थन करें और उन्हें स्वतंत्रता और समानता की शिक्षा दें। सभी का आदर्श होने के लिए स्वर्णा जैसी सक्षम महिलाओं की आवश्यकता होती है।