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भोले बच्चे की भूख एक छोटा सा बच्चा था जो न

भोले बच्चे की भूख

एक छोटा सा बच्चा था जो न सिर्फ नींद में ज्यादा समय बिताता था बल्कि उसकी भूख भी ज्यादा थी। वह हमेशा खाने को मंगता था और अपने माता-पिता से भी बहुत संजोगवश खाने का सामान माँगता था। उसके माता-पिता उसके इस तरह के व्यवहार से बहुत परेशान रहते थे। उन्होंने बहुत बार उसको समझाने की कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ।

एक दिन, उसके पिता ने उसे अपने साथ एक गांव जाकर जाने का फैसला किया था। वह उसे लोगों के इसाब से अवगत कराने और उसकी सच्चाई समझाने का उपाय ढूंढ रहे थे। सुबह तैयार होते हुए बच्चे ने खाने को माँगा था। इस बार उसके पिता ने उसे ऐसे करने से रोक दिया और उससे कहा कि बस अभी खाना नहीं होगा क्योंकि वहीँ खाना मिलेगा जहाँ वह जाएगा।

जैसे ही वे गांव पहुंचे, बच्चा ने देखा कि सभी लोग उससे दूर भाग रहे हैं। वह अपने पिता से यह सवाल करता हुआ उठा कि उसके जैसे लोग आखिर कौन सा बच्चा होता है जिससे सब दूर भागते हैं? पिता ने उसे बताया कि उसके दोनों हाथ में हमेशा कुछ न कुछ रखे बच्चे होते हैं जो लोगों से मांगने के लिए डरते होते हैं। बच्चा ने समझ गया कि वह उसी तरह का बच्चा है।

कुछ समय बाद, वे एक भंडारा मिला जहाँ बच्चा ने अधिक से अधिक खाने की कोशिश की। उसके खाने की भूख दूर हो गई थी लेकिन उसके पिता ने उसे बताया कि हर बार बिना मांगे हमें कुछ नहीं मिलता। वह उससे यह समझाने की कोशिश करते रहे कि खुश भोजन करके अन्य लोगों को भी संतुष्ट करने में मदद कर सकते हैं।

वह इसी तरह उसे पांच दिन भंडारे में ले जाते रहे जहाँ वह खुश रहा और खाना खाता रहा। उसे मालूम नहीं था कि उसके पिता ने सभी लोगों से उसकी भूख का समाधान करने और उसके करने के तरीकों को समझाने का अधिकारवादी तरीकों को छोड़ कर उसे सही राह दिखाने का उपाय ढूंढ रखा था।

पांचवें दिन, बच्चा और उसके पिता के दोस्त ने उसे एक दुकान में ले जाया और उसके उन दोस्तों ने उसे बताया कि वे उससे अपने आस-पास के लोगों का चेहरा समझने और उन्हें खुश करने के लिए उसे मदद करवाना चाहते हैं। बच्चा ने इस बात से संतुष्टि जताई क्योंकि उसे मालूम था कि वह दूसरों को खुश करने में सक्षम हो सकता है।

बच्चे ने अपने जीवन में एक सच के साथ चलना सीखा कि हमेशा बस खाने के लिए मांगना नहीं होता। जैसे हम सही कार्यों के द्वारा अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं, वैसे ही हम अपने समाज व दुनिया में भी उस पूरी तरह से सूखी नहीं मर जाते जिससे आधे समाज में हमें दूर भागते होंगे।

कागा जी

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