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विश्राम की वेली एक छोटे से गांव में, दोस्ती और

Title: विश्राम की वेली

एक छोटे से गांव में, दोस्ती और साथी की कीमत को समझने का सन्देश देती एक कहानी है। ये है छोटे राजू और मोहन की कहानी। राजू और मोहन दोनों बचपन से ही एक-दूसरे के ज्ञान व दुःख-सुख में साथ देने वाले दोस्त रहे हैं।

राजू और मोहन ग्राम पंचायत के एक मेम्बर के सुपार्शियों हैं। दोनों को साथी और देशभक्ति के भूमिका में अहमियत दी गई। एक बार गांव में विकास की एक सभा बुलाई गई, जिसमें सभी एक नई सड़क बनाने की योजनाओं पर चर्चा करने वाले थे। सभा में मोहन को अग्रणी भूमिका दी गई क्योंकि उसके पास एक उत्कृष्ट रचनात्मक मानसिकता थी, जो प्रगति और विकास की सोच को पहुंचाने वाली थी।

मोहन द्वारा दी गई चर्चा के बाद निर्णय लिया गया कि नई सड़क गांव के आदीनाथ मंदिर तक जानी चाहिए। यह फैसला गांव के अनुभवी और जानकार सदस्यों ने किया, क्योंकि मंदिर गांव में समय के साथ अद्वितीय महत्त्व बढ़ाता जा रहा था।

जब गांव की सड़क निर्माण की योजना प्रारंभ हुई, तो इसे पूरे गांव को सहयोग और बदलाव की आवश्यकता थी। डॉयलर्स मॉहरी थी जो योजना के आघात से प्रभावित हो रहे थे। ढेरों और धूल आपत्ति में रहने से उनका व्यापार शामिल था। वे इस सड़क लागत का विरोध कर रहे थे, सोचते हुए कि यह उनके लिए नुक़सानदायक साबित हो सकता है।

मोहन ने अग्रणी भूमिका ने रहते हुए गांव के लोगों का साथ जुटाने का आदेश दिया। छोटे राजू ने उसे सहायता करने का निर्णय लिया, और इसके परिणामस्वरूप नई सड़क बनने की प्रक्रिया चरमराई तक पहुंच गई।

इस दौरान गांव के अन्य परिवारों ने भी एक एक कर मोहन और राजू के पीछे खड़े होकर सहायता की। यह देखकर मोहन और राजू को अजनबी मेहसूस हुआ। वे चौंके बहुत और सोचने लगे कि क्या वास्तव में सभी तरह सहयोग कर सकते हैं।

नई सड़क का निर्माण अंतिम चरण में था, जब राजू ने सोचा कि अब वो अपने अग्रणी भूमिका से अलग हो जाएं। इसी क्रम में उन्होंने दुसरे गांव में भी एक राजनीतिक पदभार अपने नाम कर दिया। अब उनकी चिंता सिर्फ पद को रखने की हो रही थी, न कि अपने साथि और दोस्त मोहन की जरूरत की। मोहन ने इस बारे में सोचा और चिंतित हुआ।

राजू को जानते हुए उन्होंने सोचा कि उसे एक बार बात करनी चाहिए और इन ख़बरों से राजू को भी पता चलना चाहिए। मोहन ने गुफा में जाकर राजू को ढूंढ़ा और उसे यह बातें बतायी।

राजू ने कहा, “तू क्यों चिंतित हो रहा है, मोहन! मुझे आश्चर्य होता है कि तू अपनी अग्रणी भूमिका को छोड़ने का निर्णय कर रहा है। मैं तुम्हे या तुम्हारे पदों की परवाह नहीं करता हूँ, मुझे तो यह तय है कि तू मेरे सबसे अच्छे और सच्चे दोस्त है, और यह काफी है। ख़ाकरा हो तो पद क्या हुआ?”

मोहन ने कहाँ, “तू सचमुच हमेशा मेरे साथ है न राजू? मैं किसी और के मिल गया तो तू क्या मुझे भूल जायेगा?”

राजू ने मुस्कान की ओर देखते हुए कहा, “नहीं मोहन, याद रखना हम बस एक दूसरे के फ़ीते जूटने के लिए ही साथ है। बबल नदी किस और रंग की अवधी पर वापस आएगा, सहयोग और विश्राम की वेली हमेशा हमारे बीच में होगी।”

मोहन की आंखों में आँसू थे और उन्होंने अपने दोस्त की ओर बढ़ते हुए कहा, “तू सचमुच मेरे सबसे अच्छे और सच्चे दोस्त है, राजू। मुझे गर्व है कि मैंने गांव के सुधार के लिए तेरे साथ मिलकर काम किया। विश्राम की वेली जब भी होगी, हम एक-दूसरे के साथ ही होंगे।”

इसी तरह राजू और मोहन की अनकही और अनछुई कहानी के साथ सभी लोग एक हो गए, जो भलाई व स्वयं सेवा के रास्ते पर चलने का प्रतीक बनी। घटोत्कच, भीम, अंगारक और बार्बरीक – हमेशा यही लक्ष्य रहा कि युद्ध का हित करने वाले वाणी रहें। क्योंकि विश्राम की वेली वाकई ख़ास होती है, जब दोस्तों के बीच बिना शर्मिंदगी के बितायी जा सकती है।

कागा जी

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