खोया हुआ सुनहरा सपना
यह कहानी है एक छोटे से गांव में रहने वाले चिराग से, जो अपने जीवन को एक नयी राह देने के तलाश में था। उसके पिताजी एक किसान थे जो शहरी जिंदगी का सपना देखकर जी रहे थे। चिराग ने अपने पिताजी को समझाने की कोशिश की, परन्तु वो तो अपने आप को एक किसान के बिना कुछ नहीं समझ सकते थे।
एक दिन, जब चिराग किसानों की मेले में घूम रहा था, तो उसने एक रंगीन लोहे की छड़ी देखी। यह छड़ी उसे एक ख़ास एहसास दिलाती थी, जैसे कीसी अदवितीय ख़ज़ाने का राज उसमें छिपा हो। चिराग के मन में ख़्वाहिश उठी कि उसे वो छड़ी अपनी जिंदगी का पहला क़दम बनेगी। बिना सोचे समझे उसने उस छड़ी को ख़रीद लिया और इसकरीब एक करोड़ रुपये का कर्ज़ ले लिया।
जब चिराग घर वापसी कर रहा था, तो मेले के लोगों ने उससे मजाक किया और कहा, “ये कौन सा ज़ीब्रा है जिसे तूलिये कहते हो?” इससे चिराग को बहुत आहतता हुई और वो घर आकर रोने बैठ गया। उस दिन से उसने वह छड़ी अपने आप को सुंदर बनाने के उद्देश्य को खो दिया। उस छड़ी को वो ‘खोया हुआ सुनहरा सपना’ के तौर पर समझने लगा।
कुछ दिनों बाद, एक नेत्रा रंगीन सौंदर्य विशेषज्ञ गांव में आयी। सभी गांव वाले नेत्रा की सलाह चाहते थे, ताकि वह उन्हें सुंदरता के बारे में बता सके। चिराग ने भी नेत्रा से मिलने की कोशिश की, पर उसे अपना मार्ग खोजने के लिये उसे अपने टेबल पर खड़ा होते देखकर, नेत्रा ने उसे रोक दिया। वो कहीं से आये हुए प्रतिभागी का हिस्सा नहीं होना चाहती थी।
पर चिराग ने नाराज होकर अपना गर्वित महसूस किया, और उसने सोचा, “मैंने खुद्रा की खोज आपने वहां छोड़ दी है, अब मैं खुद इसकी कार्यशीलता को बढ़ावा दूंगा।” उसने अपनी खोयी हुई मुस्कान वापस पायी और लड़का नेत्रा के आगे गर्वपूर्वक खड़ा हो गया।
चिराग ने मेहनत करके बेहद सुंदर ताल पकड़ ली, गाव की सभी महिलाओं की ज्ञान विधान बचाने वाली टीम में उनकी शामिली हो गया। नेत्रा ने चिराग की कसौटी पर पानी नहीं फरसाया और चिराग को बड़ा कर दिया। वह अपने सपने की प्राप्ति ठान लिया, जिसमें उसने सपना देखा था, कि उसकी रंगीन लोहे की छड़ी उसे एक दिलचस्प संधि के साथ जुड़े गांव में ले जाये गी।
यह कहानी दिखाती है, कि किसी भी सपना को प्राप्त करने के लिये, हमें अपनी महनत और खुद के यकीन पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत होती है। हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, परन्तु फिर भी हमें कामयाब होना होगा।
चिराग का स्वप्न आखिरकार सच हुआ, वह अपनी छड़ी लेकर उस गांव में पहुंचा, जहां उसे आईजी टी टी सेन्टर की शो रूम में काम करने की मौक़ा मिली। चिराग के बारे में लोगों ने कहा कि वह इन छोटे-मोटे कदमों से अब एक बड़ा कदम लेने के मानसिकता के धनी हो गया था। वह छड़ी उसे क़ामयाब बनाने के अक़ामे-दिल में मदद कर रही थी, और वह उसे अपनी अंतिम राह देखने का अवसर दिया।
हमेशा याद रखिये, हमारे अंदर के सपनों का मान सिर्फ हमें ही रखना पड़ता है। हमेशा खुद को साबित करें और अपने कठिनाइयों का मुक़ाबला करें। यदि आप एक चाहने वाली मेहनत करेंगे, तो अंत में आपकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी।