Title: टोपी वाला बच्चा
एक बच्चे का नाम था संजय। संजय दिनभर टोपी पहनता रहता था। कभी वो पुलिस वाले की टोपी पहनता, तो कभी बैंक मैनेजर की टोपी पहनता। संजय की मम्मी कभी उसे बिना टोपी के नहीं जाने देती थी, क्योंकि संजय वहाँ जाने के लिए बिना टोपी के बहुत ही दर्दनाक हादसे भी सुनता था। संजय बचपन से ही टोपी पहने जाने का शौक रखता था।
एक दिन संजय खेल खेलते हुए एक नदी के किनारे पहुंच गया। नदी के छोटे से पुल से बच्चे कुछ बना रहे थे। संजय ने उनसे पूछा, “तुम्हें क्या बना रहे हो?” बच्चे ने कहा, “हम नई नई खिलौने बना रहे हैं।” संजय ने बच्चों के साथ खेलने का नामकरण किया और पुल से कुछ पत्थर फेंककर अपना समय गुजारना शुरू कर दिया। बच्चों ने संजय से पूछा, “तुम्हारी टोपी अच्छी है अगली बार हम टोपी बनाएंगे।” संजय ने बच्चों को हंसते हुए कहा, “अगली बार ज़रूर आऊंगा।”
फिर नये खिलौनों की बटोर वह अपने घर लौट रहा था कि संजय को एक अनोखी चीज नज़र आई। चीज वो पत्थर नहीं थी बल्कि एक सोने की टोपी थी। वो टोपी बच्चों ने बिना टोपी वाले संजय की टोपी बदलने के लिए बनाई थी। संजय ने टोपी को हाथ में लेकर उससे खुश होकर बच्चों के पास जा पहुंचा। बच्चे संजय को देखते ही उन्होंने अपनी बनाई तरकारी अपने पास रख दी।
एक दिन संजय को एक बड़ा सफलता मिला। वो अपनी पढ़ाई में बहुत आगे बढ़ गया। उसे अपने स्कूल के मैनेजर का सम्मान भी मिला। उसके बाद संजय अपनी टोपी पहनना छोड़ दिया। संजय के घर पर एक समारोह था जहां वह बाएं और दाएं से सराहा जा रहा था। संजय की मम्मी ने वो सब संजय के लिए एक बड़ी मानवीय जीत का दूसरा चेहरा था। हर एक इंसान की कवायद अलग-अलग होती है लेकिन संजय ने फिर से बड़े समझदारी से अपना सब कुछ पीछे छोड़ दिया।
संजय फिर से पुल पर जाना शुरू कर दिया और वहाँ इन बच्चों की बनाई खिलौनों से खेलना शुरू कर दिया। बच्चों ने संजय को देखते हुए पूछा, “अब तो तुम्हें टोपी बदलने की जरूरत नहीं है। संजय ने हंसते हुए कहा, “नहीं वो फिर से पहनूंगा क्योंकि टोपी का मैं सम्मान करता हूं।”
अब संजय की टोपी एक अलग ही उपयोग में थी। इससे पता चलता है कि जीवन में उपहार कुछ ऐसा होता है जो हमें हमारे अरमानों की ओर ले जाता है। हम इसे ले जाकर इसे एक समय के लिए ही जिंदगी में संभव होते हुए फायदा नहीं उठा सकते हैं। यही संजय ने सीखा था जो उसके वक्त का सबसे बड़ा सीखने का प्रशंसक हो गया।