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दर्द भरी अंधी एक छोटे से गांव में एक परिवार

Title: दर्द भरी अंधी

एक छोटे से गांव में एक परिवार रहता था। इस परिवार में एक महिला थी जिसका नाम सोनू था। सोनू बोहोत संतुलित महिला थी और कभी घमंड नहीं दिखाती थी। वह लोगों की संजीदगी से काम लेती थी। वह एक दिन अपने कीर्तिमान बच्चों को बेहतर भविष्य देना चाहती थी।

वह सपने में भी। वह एक दिन सपने में एक सड़क के किनारे से बारिश के मौसम में आगे जाती हुई नजर आईं। सोनू ने सोचा कि ये सब ईश्वर की मर्जी है। पूरे दिन उसका ख्याल सोनू को ही रहता था और वह एक निर्णय लेती है।

वह यह निर्णय लेती हैं कि जब वह सड़क के किनारे से गुजरती है, तो अगले दिन काम में नहीं जाएगी। वह अपनी मां से सपने का मतलब मालूम करने के लिए उनसे संपर्क करती हैं। उनकी मां ने सोंचा और कहा कि आपको संभवतः आपके गांव की भली भाँति हिम्मत होनी चाहिए कि आप घर से निकल कर परिवार का पैसा कमाएं।

अगले दिन, सोनू सबसे पहले सामान बेचने के लिए बाजार में जाती। वह बेचने लगीं लेकिन बिक्री काफी कम होती थी। उसे आगे जाने के लिए कोई ऑप्शन नहीं रहा। वह गंधी ऊष्मा वाली सड़क के किनारे से जाना चाहती थी।

सोनू ने वहां से कई घंटों तक गुजरती हुई थक जाती हुई थी बिना कुछ कमाए हुए। उसे सीधे अपने घर लौट जाना था। फिर सोनू ने देखा कि किसी और के साथ अब तक एक बहुत ही बड़ी समूह उसे पीछे से अटैच कर रहा था। समूह में कुछ लोग सोनू से कुछ मांगने आये थे और कुछ लोग सोनू से पैसा मांग रहे थे।

सोनू ने समूह के लोगों को समझाना आरंभ कर दिया कि वह उनके मांग को संभवतः पूरा नहीं कर सकती थी। उसे उनसे इस बात की अनुमति भी नहीं थी। कुछ बदमाश उसे पीठ पर खूब मारने लगे और वह उड़ान भर गई। उसे सभी गम में मिल गए थे।

वह घर लौट आईं और उसे अपने परिवार के सामने हालात बताने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। उसे उस दिन के दर्द का जिक्र करते हुए लगा कि वह कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकती। उसका परिवार उसे समझाता रहता हैं कि डर मतो और आगे की जिंदगी में आवाज के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

बारिश का मौसम आए दिन धीरे धीरे ठंडक सुखाव देता गया। सोनू के सपनों का कुछ भी पूरा नहीं हो रहा था। वह उत्सुक थी कि वह स्वयं को दृढ़मन मानती हुई पैसे कमाएंगी। कुछ दिनों के बाद, सोनू को मौका मिला ही नहीं जिससे वह पैसे कमाने में सक्षम होती। वह भ्रमित थी कि वह अब क्या करे।

उस दिन, उसने दिन का काम नहीं किया। वह अकेली तहल रही थी जब उसने कुछ अति अलीक नजर आया। यह समझने में उसे काफी समय लग गया कि अंधी थी। ऐसा लगता था कि वह सबकुछ नहीं देख सकती है। उसे उस परछाई में कुछ दिखना चाहिए था।

वह उस परछाई में चले जाने के लिए उत्सुक हुई। लेकिन, वह ऊंचे स्तर के लिए बनी नहीं थी और उस वक़्त भी वह समय सर्वाधिक दुखी थी जब उसे पता चला कि उसके सपनों का कुछ भी पूरा नहीं हुआ था।

उसका परिवार भी कुछ नहीं कर सकता था। वह अकेली थी जो सबकुछ संभव बनाने में सक्षम थी और सबकी संजीदगी के संगीत से बहुत सही साथ देती थी। उसे याद रखते हुए उसने दुःखी अवस्था से बाहर निकल कर पूरे दिन में चली गयी।

साथ ही सोनू उस स्थिति को हल करने में सक्षम नहीं थी। वह फिर से अकेली थी। इस घटना से, सोनू को यह हैसियत मिली कि उसे अपनी अंधी अवस्था को स्वीकार करना होगा। कुछ अवसरों में, हमें अपने अनर्गल ठहराव को स्वीकार करना होगा। हमें हर वक्त आगे बढ़ते रहना होगा।)

कागा जी

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