दोस्ती का रंग
श्याम और सुरेश बचपन से ही एक दूसरे से बहुत अच्छे दोस्त थे। कोई भी खुशी या दुख, संकट आ तो सबसे पहले एक-दूसरे के साथ साझा करते थे। उनकी दोस्ती की ये जड़ उन्हें हमेशा संजोए रखती थी।
जब श्याम तीन साल का था, तब से उनका घर सुरेश के घर के साथ-साथ था। वे अपनी माँ के साथ उतनी ही खुश रहते थे जितना वे अपने पिता के साथ रहते थे। एक दिन, बारिश के दिन श्याम की माँ बाजार में सब्जियां खरीदने गई थी। उस समय श्याम को बहुत बोरी लग रही थी, तो सुरेश उसे ज़ोरदार गुम्मट बना देकर रंग-बिरंगे छत्ते में ले गया। उसने उस दिन से श्याम की आंखों में खुशी का मंदिर बसा लिया था।
उन्होंने एक साथ बचपन के नगद जीवन को जीता। हर मौसम में वे खेल खुशी करते और एक-दूसरे से सभी बातें साझा करते थे। श्याम एक वर्ष पहले उच्च माध्यमिक कक्षा में शामिल हुआ था और सुरेश अभी भी माध्यमिक कक्षा में था। हालांकि, उन्होंने अपनी अलग-थलग पढ़ाई में कोई अंतर नहीं दिखाया, उनकी बातें हमेशा एक जैसी ही थीं और वे हमेशा एक-दूसरे की मदद करना और अभी आपसी के प्रति दिखाये गए उत्साह के साथ उनकी पढ़ाई करते थे।
एक दिन श्याम के घर में एक छोटी सी दौलती अनुस्धान शुरू होने वाली थी और उसने उसके दोस्त सुरेश को यह दिखाने के लिए पूछा कि यदि उसे 10,000 रुपए मिलते हैं, तो उसे क्या करना चाहिए। सुरेश ने उसके जैसे ही उत्तर दिया, वो जल्दी से बता दिया-एक भी इंच नहीं मुझे उस दोस्त से दूर जाने का इच्छा होता है। श्याम धन्य हुआ और मुस्कुराते हुए उससे उसे गले लगा लिया। उसे लगा कि उसकी दोस्ती का असली रंग इसी मौसम में निखर गया है। उसका दोस्त उसे उसकी सारी आवश्यकताओं के लिए समर्थ होने के साथ-साथ उसके सुख-दुःख को भी दर्शाता है।
इस घटना के बाद से श्याम ने अधिक समझा कि वह धन, मान-सम्मान और अन्य समष्टियों से बड़ा है। लोगों को उसकी छोटी सी मदद, खुशनुमा मुस्कुराहट और दिल से निकली याद सब कुछ अपनाने के लिए तैयार होते हैं। सुरेश के मौज मस्ती झील की तरह श्याम के जीवन को रंग से भर देते हैं। उनकी दोस्ती एक ऐसे रिश्ते का नाम है जो जीवन के सारे रंगों का सम्मिलन है।
आज श्याम और सुरेश की जोड़ी को उनके भंवर में एक नया कड़वाहट आ गया है। सुरेश की माँ की कोविड-19 से होने वाली मृत्यु ने अपनी राह ले ली। यह उन दोस्तों के लिए एक सच्चाई में बड़ा मर्तबा था। श्याम अपने दोस्त के लिए सहानुभूति और सहभागिता बना रहा है। उसने सुरेश के परिवार को सहयोग अपनाने के लिए अपने आप को बमोला बना दिया है। उसने सुरेश की माँ के निधन के बाद अपनी तमाम संपत्ति को कौन जानता है कभी भी न बता दिया था।
श्याम अब अपने दोस्त के संघर्ष में उसके साथ खड़ा है। उसके भाई-बहनों को पढ़ाई जारी रखने में सहायता करते हुए उसने उन्हें एक स्थाई अधिकार के साथ स्कूल भेजने के लिए संगठन किए। श्याम ने सुरेश की माँ की याद में एक शैक्षणिक अनुसंधान संस्थान स्थापित किया था ताकि आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान और विकास की बेहतर वेदना मिल सके।
श्याम जानता है कि परिवार नहीं होता, दोस्त भी नहीं होते, और उनकी दोस्ती का महत्व जैसे जैसे समय बीतता है, वे संजोए रखने के लिए उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। श्याम का मंत्र हमेशा यही था कि वह अपने दोस्त सुरेश जैसे अनमोल रत्न को हमेशा संजोए रखेगा।