दोस्ती की कहानी
जमीन के दोस्त हमेशा रहते हैं। वे न केवल हमें हर गम से मुक्ति दिलाते हैं, बल्कि हम पूरे जीवन में संगीत का सहारा भी बनते हैं। इसीलिए हम उन्हें अपना सबसे ऐसा साथी मानते हैं जिससे हमें कभी प्यार नहीं होता।
यूं तो दोस्तों की ये कहानियां अनेक होती हैं, पर आज हम बात करते हैं एक ऐसे दोस्त की जिसकी तकदीर शायद उसके दोस्त से मिलने से बन गई थी।
रमेश और सुरेश दो अच्छे दोस्त थे। इनकी दोस्ती से लोगों की नजरें कुछ वहमय होती थी, क्योंकि ये दोनों अलग-अलग धर्म के होते थे। पर इस दोस्ती ने उन लोगों की नज़रों में समंजस्य का एक नया मायना रखा।
रमेश हिन्दू था जो कि अपने परिवार के साथ गांव से शहर में रहने आया था। सुरेश मुसलमान था, जो अपने पिता के साथ शहर में रहता था। दोनों के पास बहुत कम समय होता था हमेशा एक-दूसरे से मिलने के लिए, पर उनकी दोस्ती का सारा कमी इसी वजह से पूरा हो जाता था।
सुरेश शाम को घर से निकलते समय एक बार उनके घर को जाता था, जहाँ उनके दोनों चाचा-चची रहते थे। चाचा-चची उनके उन्हें प्यार करते थे ऐसे लगता था कि उनकी ममता तक प्रभावित हो जाती थी। वहाँ सुरेश को रमेश भी मिलता था। वे दोनों अपने-अपने चाचा-चची की बातें सुनते थे और चाहते थे कि वह दोनों कभी अपने घर से न होंते।
एक बार सुरेश अपने घर में जब पहुंचा, तो उसने देखा कि उसकी मां उससे प्यार से संजय के घर जाने को कह रही हैं। संजय उसके बड़े भाई के फ्रेंड थे जो ट्यूशन देते थे। उसने सोचा कि उस के नजरिये से उससे असली दोस्ती नहीं हुई थी, पर फिर भी वह खुस हो गया।
रमेश की बात करें तो उसे एक दिन सुरेश ने कहा, “यार हमेशा दूर हो जाना कितना मुश्किल होता है ना? तुम और मैं हमेशा इस चिंता में रहते हैं कि कभी कुछ गलत न हो जाए।”
रमेश ने मुस्कान देते हुए उससे कहा, “बिल्कुल सही कहा तूने। और फिर, हम रहेंगे तो एक दूसरे के साथ। हम एक हमारे साथी की तरह हैं जिसके सर पर उँगलियाँ हमेशा विश्राम करती हैं।”
दोनों के बीच बैंकर मिट्टी के तरह था। कहीं भी दोनों जाते थे, वहाँ उनकी अनोखी मिसाल बनती थी। पर उन्हें ये भी दिलाता रहता था कि दोस्ती एक साधारण नाम नहीं, बल्कि एक प्राण मत्र होता है।
एक बार हालात इतने खराब हो गए थे कि रमेश ने मुंह से मुस्लिम धर्म के बारे में गालियां देना शुरू कर दीए पर… कुछ देर पश्चात रमेश उनकी दोस्ती के महत्व को समझते हुए दुःखी भी थे। वह उस दिन से गमगीन हो गया था। उसे पता था कि सुरेश उसकी दोस्ती महत्वपूर्ण संजीदगी का हिस्सा था, उसे हर वक़्त उनकी यादें उधेर करतीं थी।
एक दिन उन दोनों को पता चला कि उनकी स्कूल में राष्ट्रीय चैंपियनशिप के लिए टीम बनाने जा रही थी। वे दोनों अलग-अलग खेल खेलते थे, पर उन्हें पता था कि वे एक दूसरे के साथ गुणों को जोड़ते हुए एक शानदार टीम बना सकते थे। उन्होंने दूसरों से कुछ समय मांगा और मिलकर टीम बना ली।
ये हमेशा सही साथ का अभिव्याक्ति होता है।
अपनी दोस्ती के प्रति अपने विश्वास और एकता को जानते हुए, वे दोनों बड़े हो गए और अपनी दोस्ती को मजबूती दिला दिए। जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया, दोनों के बीच दोस्ती के शब्दों का महत्त्व मुख्य हुआ और वह इसे भली-भांति समझते हुए कभी अफसोस नहीं करते थे कि उनके साथ ज़िन्दगी में नहीं होते तो क्या होता।
दोस्ती का यह प्रभावसी उदाहरण हमेशा यादगार रहेगा। ये दोनों दोस्तों ने दुनिया को देखाया कि धर्म, जाति या कोई भी अंतर इस तक नहीं आने देने चाहिए। इस कहानी से सीख लें कि दोस्ती एक वहम नहीं होती, इससे दुनिया के लोग बदलते हैं और इसे अलग-अलग धर्मों या जातियों के बीच में नहीं बाँटा जा सकता है।