Title: बचपन की यादें
विजय अपने बचपन से ही एक जन्मभूमि से बिछड़े हुए थे। बचपन की यादें उन्हें कभी कभी सता लेती थी। उन्हें उस समय के दिनों की यादें आज भी ताजा महसूस होती थी। वह उस समय के दिन के बारे में सुनाते सुनाते अपने आप को चीढ़ते थे। एक दिन उन्होंने फिर से वह समय याद कर लिया था।
वह समय था जब विजय 10 साल का था। उनका परिवार एक से बढ़कर एक मजेदार परिवार था। उनकी माँ नेहा और बाप रमेश अपने वेतन से अपने बच्चों को पढ़ाई करा रहे थे। लेकिन उनका दिन इतना घना नहीं गुजरता था कि उन्हें खुशी का समय मिलता था।
विजय की बड़ी बहन के आगे नौकर चलाने का शौक दिमाग में जम चुका था। वह बहन के साथ नौकर चला कर बहुत खुश होता था। वह नौकर आपस में लड़ते खेलते हुए बस से उतरने लगते थे।
उस दिन विजय नौकर नहीं चलाना चाहता था और वह अपने घर के सामने खुशी से बाड़े-बाड़े छलंग ले रहा था। वह अपनी खुशी में इतना खो गया था कि उसे दिखाई नहीं देता था कि उसकी बहन उसे बस में से उतारने चली गयी थी।
विजय को जानते हुए उस नौकर ने बस में से उतरते-उतरते उसे दौड़ाते हुए पकड़ा था। विजय भागते भागते अचानक उस छोटे से शहर में मिले एक बर्गर वाले के पास पहुंच गया था।
उस बर्गर वाले ने उसे देखते ही कहा, “आओ बैठ जाओ और डिनर लो, यही पर मुफ्त है।” एक चमक उठी थी विजय के लिए। वह ब्रदर्स और एमिको से भरी दुकान में दाखिल होते हुए मैदानी इंटीयर्स और अंजिर का फ़्रेंच आइसक्रीम हथियात किया। उन्होंने सब कुछ खाया था।
उस दिन से विजय की जिंदगी खुशियों से भर गयी थी। नौकर चलने के बाता में सोचते ही वह हँसते नहीं ठहर सकता था। वह हर दिन अपनी माँ के साथ घर की सफाई करता था। जब वह ये सब करता था तो सोचे बिना ही उसे एक सुंदर खुशी मिलती थी।
उस समय टेलीफोन फोन बजा था। नेहा ने फोन उठाया और फोन करते हुए बोली, “वह हम रिलेशनशिप है। आज 6 बजे कोई पंत के साथ टेबल के पास मिलने जा रही है। यह उनके अंतर्गत आता है। तुम दोनों साथ में जाना।”
विजय ने बहुत कुछ सीखा है और उसने इस बारे में सोचा था। उसे पता था कि ये बहुत स्वरुप वाले होते हैं और ये बहुत पैसा खर्च करते हैं। उसे ये सोचते हुए सोंचा था कि स्कूल बस में हवा नहीं थी, खाने का समय नहीं था, और अब उसको पंत के साथ पूरी रात अपना समय बिताना होगा। विजय के दिमाग में बस एक ही बात आ रही थी कि वह चुपचाप बैठे चलें और गृह उतपत्ति प्लानिंग बैठे, अपने परिवार के साथ खुशी से वहीं रहते थे जहाँ वे थे।
मीटिंग में प्रेसन नाम की अंतरराष्ट्रीय बैंक में रखे खाते कंत्र ने अपनी रिपोर्ट दी और एक विवरण पेश किया कि कैसे वेलॉग ने उनके खाते हैक किए थे। उन्होंने अपनी रिपोर्ट के साथ से सेकंडरी स्कूल की और कैरियर की विद्यार्थि भी लाई थी। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे लोगों ने मोबाइल फोन नंबर का इस्तेमाल करके उनके खातों में लेनदेन किए हैं और कैसे माइ बैंक ने उनके खातों में 15,000 रुपये का स्टोलेन फंड मिला है।
विजय के दिमाग में फिर बार-बार उस दिन की बात घूमती रहती थी। उसे फिर से वो वक़्त याद आता था जब उसके परिवार के साथ होते हुए वह खुश होरहा था। एकदिन उसने सोचा कि अगले हफ्ते उसकी डड़ी का बर्थडे हो रहा है। उसने सोच लिया कि उसे नए जगह जाना और उसकी प्रतिदिन सफाई करने वाली लड़की से एक फ्री वोलंटियर ग्रुप बनाना चाहिए।
अगले हफ्ते विजय के घर परिवार के साथ खुशी से फिर से जुड़े। वह अपनी डड़ी को ऑफिस लेकर जाने के इंतज़ार में था। कुछ ही देर में उसकी डड़ी ऑफिस बस में चढ़ कर उस स्टेशन से उतर गयीं। विजय और उनकी डादी ने बस खरीदते हुए कोई बातों से अपनी यादों में खो जाएं खुशी से दराजों में बैठ गएं। वे खुश रहे और हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।