धनुष और शान्ति की खोज
एक समय की बात है, एक गांव में रहने वाले लोग खुशहाल और प्रसन्न रहते थे। लेकिन उनमें एक लड़के का मन हमेशा उदास और विचलित रहता था। उसका नाम राम था। राम के अभिभावक वहीं उस गांव में रहते थे और उनका सबसे बड़ा चिंता यह था कि राम बड़ा होकर क्या करेगा।
एक दिन राम के पास संज्ञान हुआ कि शान्ति की कमी उसके जीवन में है। उसके प्रश्नों का उत्तर ढूंढने और शान्ति की खोज में निकलने के लिए वह अपने गुरु से मिलने चला गया। राम का गुरु राजा धनुष था।
राजा धनुष के बहुत सारे शिष्य थे। राम को उनमें कुछ समझ नहीं आता था। वह सोचता था कि सब लोग कम से कम खुशता क्यों नहीं होते। एक दिन राम अपने गुरु से मिलने चला गया और उनसे शान्ति की बात की।
राजा धनुष ने अपने शिष्य को शान्ति की खोज करने के लिए बताया। राम को जो उत्तर मिला वह बहुत अचम्भित कर देने वाला था।
उन्होंने राम से कहा, “राम बेटा, शान्ति तुम्हारे अंदर है। तुम अपनी आंतरिक शक्ति से उसे प्रकट कर सकते हो।” यह सुनकर राम बिल्कुल उत्साहित हो गया। इससे पहले उसे कभी ऐसा नहीं सुनने को मिला था।
राम अब अपनी आंतरिक शक्ति का उपयोग करके शान्ति की खोज करना चाहता था। धीरे-धीरे वह अपनी आंखें बंद करता गया। उसकी साँसें भी शांत होने लगीं। चिंताओं से भीर उतर गया था।
थोड़ी देर के बाद राम के सामने एक सुंदर दृश्य था। एक झरने के पास एक सुंदर बाग़ हुआ करता था। सारे वृक्ष आसमान तक ऊपर उठे थे। निकटतम वृक्ष के ठोस तने से, एक ही डोंगी को टांगों में बाँधा हुआ, एक आदमी सूखी डल से होकर निकला। वह राम के पास आकर वह सूखी डल देने लगा।
राम ने देखा कि डल की योग्यता ऐसी थी कि इससे सूखी त्वचा भी चमक उठी। वह अपनी अपनी त्वचा पर लगाने लगे।
उसी समय राम को एक बिना कानूनी बैंक का खजाना मिल गया। राम ने कुछ नहीं सोचते हुए उसे तुरंत राजा धनुष के पास ले जाने का निर्णय लिया।
राजा धनुष ने दोनों चीजें देखी और फिर राम से पूछा, “बेटा, क्या ये शांति की खोज है?”
राम परेशान हो गया। उसने सोचा कि उसने शांति की खोज कैसे कर ली, लेकिन धनुष ने तो इसे भी खोज लिया।
राम ने निराश होकर कहा, “नहीं सिर, यह शांति नहीं है।”
राजा धनुष हंसते हुए राम के पास गए और उसे गले लगाकर बोले, “बेटा, शांति तुम्हारे अंदर है।”
राम को यह समझने में समय लगा, लेकिन उसने खोज कर निश्चयता ढूंढ ली। वह निश्चयता से कह गया, “हाँ सिर, मैंने अंदर की खोज करके शान्ति पाई है।”
राजा धनुष ने उसे अंतिम धनुष में बैठने के लिए कहा। राम उस धनुष में बैठ गया और पूरे निष्क्रिय से रह गया। और वहां बैठे हुए एक खुशी का अनुभव करने लगा।
राजा धनुष ने कहा, “बेटा, यह है वह शांति जो तुम्हारे अंदर है।”
राम ने उस समय दुनिया का सबसे खुश व्यक्ति बनने का अनुभव किया। वह अपने अंदर की शक्तियों को समझ गया था और अब उसे अपने जीवन में इसका उपयोग करना था। उसके अच्छे विचार और अच्छी क्रियाएं उसने शान्ति पाने में मदद की।
राम का अभिभावक भी खुश था कि उसके बच्चे ने अपने से और दुविधाओं से निकल कर, शान्ति पाकर सबके मन में खुशी उत्पन्न कर दी।