Title: बदलती आदतें
एक छोटी सी राष्ट्रीय स्कूल में एक बड़ी समस्या शुरू हुई थी। संचार में शीघ्रता न होने की वजह से बच्चों के पैरेंट्स बहुत नाराज़ थे। तनाव संग्रहित होता जा रहा था क्योंकि बच्चों का स्कूल समय पर शुरू न हो पाने के कारण उन्हें संबंधित कामों में एक अंतराल बनना पड़ रहा था।
बारिश के कारण सभी कंगूने थे। रैन कोट, जूते बदलते थे। स्कूल के ताजे समाचार सुनने के लिए आते थे। बच्चों के पैरेंट्स रोज़मर्रा की बोलचाल में अपनी नाराजगी जाहिर करते थे। प्राचार्य जी जानते थे कि ये वाकई मायूस करने वाली स्थिति है। वे हालात सुधारने के लिए कोशिश करते रहते थे। उन्होंने बच्चों से पूछा कि उन्हें कैसे सहायता दी जा सकती है। पर उनका कोई जवाब नहीं आया।
कुछ देरों बाद एक दिन, रैन की वजह से स्कूल के कुछ बड़े वृक्ष गिर गए। वो मांसपेशी खाने वाले थे। स्कूल के दूसरे हिस्से में दूध की दुकान है जहा से दूध लेते है। दूध मल्ल नेता जी के भाई को होता। समाज में ये आदत रखी जाती थी कि जहाँ भी कुछ ऐसी चीजें गिरती हैं जो मांसपेशी खाने वाले होते हैं वहाँ उनकी निगरानी में होता था। दूध मल्ल नेता जी को इस से कोई रुखसती नहीं थी।
यूँ तो वे हमेशा स्कूल के बच्चों के लिए भी अपनी नजरें रखते थे किन्तु इस संतोषजनक काम के लिए वो जाने जाते थे। दूध मल्ल नेता जी को पता था कि जब लोगों को सामाजिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है, तो उनकी दूकान चलती है। वो इस तथ्य के लिए समस्त शहर में जाने जाते थे।
एक बार जैसे ही मल्ल नेता जी ने इस तरफ देखा कि बड़े वृक्ष गिर गए हैं, वो तुरंत उस ओर दौड़ने लगे। उन्होंने वृक्षों की निगरानी करा दी। वे वहाँ प्रार्थना करते थे कि कोई स्कूल के बच्चों को ज़रूर संषोधित करें। समय बीतता गया और एक दिन लोगों के दिमाग में कुछ चल रहा था।
एक दिन, स्कूल में एक महिला परिवार विशेषज्ञ लोगों को संबोधित कर रही थी। उसने सभी लोगों से पूछा कि उन्हें उस समय क्या लग रहा है जब कि वो रेडियो में सुन रहे हैं या समाचार पढ़ रहे हैं। लोगों ने उत्तर दिया कि वो सभ्यता, मानवता, स्थान या संभवतः परिस्थितियों को सोच रहे होते हैं।
महिला ने लोगों से पूछा कि वो पढ़ाई के कहानियों में क्या ढूंढ रहे हैं। लोग ने उत्तर दिया कि उन्हें लोगों के स्वास्थ्य, लोगों की दुर्दशा और सामाजिक समस्याओं को सोच देना है।
लोगों ने स्कूल बसों के तिमाही परीक्षण के बारे में भी जोर लगाना शुरू कर दिया। शिक्षकों ने बच्चों की दिनचर्या पर ध्यान देना शुरू कर दिया और पुष्टि की कि स्कूल ताजगी का महसूस करेगा। बच्चों ने दोहराया कि उन्हें मोटो क्लास की ज़रूरत है।
अब भी नाराजगी देखने के बजाए, हल्की मुस्कुराहट दिखाई देने लगी थी। लोगों ने इतनी भावनाओं के साथ स्कूल की समस्याओं का सामना किया कि बच्चों ने हार्मोनी का एक आंगना तैयार कर लिया।
उस समय, स्कूल प्राचार्य जी के कदम फिर से थम गए। वे स्कूल से हटने के समय, उन्हें यह लगता था कि मानसिक तनाव को दूषित रखने का कोई एक मात्र कारण नहीं है। कुछ नयी समस्याएं बार-बार उत्पन्न होती रहती हैं और इनका पूरा समाधान किसी भी एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं होती। उन्हें यह समझ में आ गया था कि उनकी सहायता करने के लिए समाज की संस्थाओं की जरूरत होती है।
स्कूल में मंडली बिठायी गयी, जहाँ अलग-अलग क्षेत्रों से लोगों ने एक दूसरे को मिला दिया। सभी एक साथ काम किया। समाज की संस्थाओं ने अनथ बच्चों के लिए पुस्तक दान, कपड़े दान और खाने की व्यवस्था की। बच्चों को पढ़ाया गया कि उन्हें भी अपनी समाज में एक जगह प्राप्त होनी चाहिए। स्कूल में जाने का नारा भी दिया गया।
फिर देखा गया कि स्कूल में टीचर्स वैल्यूर परेशान होने लगे जिसने उन्हें अपने कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अनुरोध किया था। बाद में बच्चों ने इन अनथ बच्चों के लिए भी अपने कार्यक्रम में स्थान दिया जिससे उनमें एहसास हुआ ताकि समाज का हर व्यक्ति समान होता है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जब हमारी आदतें बदलती हैं, तो समाज को कुछ नया मिलता है। अगर हम समाज में उत्तरदायी रहते हैं, तो हम वस्तुतः अपने देश का सबसे नेक व्यक्ति बन सकते हैं।