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दोस्ती की दास्तान कृष्णा जमीनदार के घर की बेटी थी।

Title: दोस्ती की दास्तान

कृष्णा जमीनदार के घर की बेटी थी। उसे बचपन से ही वहीं की लड़कियों की तरह सड़कों पर खेलते देखा जाता था। कृष्णा के पास कोई सहयोग नहीं था, वह अकेली होकर बिना किसी दोस्त के सभी समस्याओं से निपटना सीख गई थी। उसे कुछ देर संकोच करने के बाद उसने एक नई परिवर्तनशील महिला संगठन में शामिल होने का फैसला किया।

शुरू में, कृष्णा थोड़ी चौकन्ना थी। वह किसी भी समाज के सदस्यों के साथ बातचीत में हस्तित्व नहीं रखती थी। पर उसने वास्तव में स्वयं को संगठन में सम्मिलित करने से पहले कुछ छोटे-छोटे कदम उठाए।

वह कुछ समय और इंतजार करने लगी, जब उसे शब्द और ढंग सीखने में सफलता मिली, एक हफ्ते में, वह महिला संगठन में सदस्य बनी। अब उसकी सोच ने एक नई दिशा ली। उसने अपनी क्षमताओं को समझा, और अपने संगठन में आगे भड़की।

कृष्णा संगठन के लिए काम करने लगी, और उसका संगठन इस बात को समझ गया कि वह एक अमूल्य संसाधन है। उसका संगठन उसे अपने समूह का एक नेतृत्व दे दिया, जिससे वह बदलने और उसके बारे में नई बातें सीखने की क्षमता प्राप्त करके अपनी स्वयं की विकास कर सकती थी।

और तब एक दिन, उसे उसका सबसे अच्छा दोस्त मिल गया। एक लड़की, नाम था अंजलि। दोनों की दोस्ती तुरंत हो गई, जब वे दूसरे संगठन के सदस्यों के रूप में मिले। यह एक साक्षात्कार नहीं था, लेकिन कुछ खास था, जो उन्हें दूसरे संगठन के सभी सदस्यों से भिन्न बनाता था।

दो दोस्तों के बीच भावनात्मक संगीत का विराम हो गया था और वे अहसास करते थे कि वे दोनों एक-दूसरे की बहुत ही अच्छी तरह से समझते हैं। उन्होंने एक-दूसरे के साथ संवाद किया, उन्होंने एक-दूसरे के साथ कौशल और अभिरुचि बाटने शुरू की। कृष्णा अपने नए दोस्त अंजलि से अपने संगठन के लिए नए कामों का सुझाव लेने लगी और अंजलि ने बहुत से नए परियोजनाओं के लिए नए सुझाव दिए।

दोनों के बीच नैतिक समरसता की उपस्थिति परिणामदायी बनी। वे दोनों एक-दूसरे की मजबूतियों को स्वीकार करने में सक्षम थे। उन्होंने एक-दूसरे की तुलना में स्वयं को कम नहीं समझा।

दोनों अंजने में एक भावुक अनुभव कर गए: एक दूसरे के साथ वे अपनी सांझा सीमाओं को पार कर गये थे। उन लोगों को सामाजिक कल्याण के प्रति उन दोस्तों की भावनाओं पर पूर्ववत बल मिला।

दोनों सदस्यों ने एक साथ में काम करने में सफलता सफलता प्राप्त की। कई नई परियोजनाओं की शुरुआत थी, जिनमें कई नए और वर्षों से संचालित परियोजनाओं का सन्दर्भ था। इस कारण से, उन्होंने संपूर्ण संगठन की स्थिति में सुधार किया।

माओ के अमेरिकी विचारक हॉरेस केपर ने एक महत्वपूर्ण विचार रखा था, “एक व्यक्ति न केवल अपने स्वयं के साथ होता है, बल्कि अधिकांश लोगों के आसपास भी होता है।” कृष्णा एवं अंजलि ने अपने संगठन के लिए एक सामाजिक संरक्षक बनकर लोगों की ज़िंदगी में उन्हें सुधार करने का संकल्प लिया।

दोस्ती के संदेश को कृष्णा ने सभी संगठन के सदस्यों के लिए लागू किया, और उसका संगठन अब एक फूल जैसा खिल रहा था। उन लोगों की व्यक्तिगत संभावनाएँ और उनकी व्यक्तिगत आशाएं उनके संगठन का हिस्सा बन गयी थी।

ऐसा कुछ दिन बीत गए, एक दिन एक सुखद बात हो गई, जब कृष्णा ने संगठन के सभी सदस्यों को पोस्टर बाँटते हुए देखा और एक अधिकारिक घोषणा की, “मैं अपने संगठन से अपनी उपयोगिता के लिए इस परियोजना में शामिल होने से नहीं रुकूंगी।”

दोस्ती और संघर्ष में, संगठन की उपलब्धियों और प्रतिबद्धताओं में उन दोस्तों ने एक बात सफलता का तारीका सीखा। उन्होंने एक दूसरे की मुश्किलों का सामना किया और विरोधाभास को अपनी स्थान पर लगने वाले कठिनाइयों को परिभाषित किया। दोस्ती और सहयोग के आधार पर वे संपूर्ण संसार में कोई भी काम करने के लिए सक्षम हो गए थे, जिसे संगठन और उनकी दोस्ती की वारसा कहा जा सकता है।

कागा जी

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