Title: एक घर
वहाँ एक घर था, जो कि बहुत समृद्ध था। उसमे एक परिवार रहता था, जो हमेशा समृद्धि और खुशियों में खुश रहता था। पर उन लोगों को ये नहीं पता था कि उनसे ज़्यादा खुश नामी परिवार ज्यादा समृद्ध भी था।
ये समृद्धि और खुशियों से भरे परिवार एक छोटे से गांव में रहते थे। उन्हें इतनी समृद्धि के कारण उन्हें समाज में बहुत उच्च माना जाता था। मानो कोई अमीर और शक्तिशाली व्यक्ति हों।
उनके पास बहुत सारी वाहनें, आधुनिक मकान और भवन, लक्जरी वस्तुएं थी। लोग उन्हें सबकुछ हासिल किए हुए समझते थे, लेकिन समाज उस छोटे से गांव के ज्यादा प्रभावशाली था।
ऐसे ही एक दिन उन्होंने एक गरीब परिवार की मदद की। समृद्धि और खुशियों के बीच उन्होंने इस बात को भूल गए थे कि समाज उन्हें कभी भी इतना महत्व नहीं देता था।
उन्होंने अपनी सारी जमीन और संपत्ति को गरीबों के लिए दान कर दिया। इससे समस्त समाज में खुशी का असाधारण माहौल बन गया। सभी लोग उन्हें सबसे ऊपर जगह देने लगे।
पर इसके बावजूद वह घर अब सुसंगत नहीं था। एक तरफ समाज उन्हें सबसे ऊपर मानता था और दूसरी ओर उन्हें तंगदास्त करता था। वह घर अब दुख का घर था।
कई लोग उन्हें सस्ते सुझाव देना शुरू कर दिए। कुछ लोग उन्हें सितमगर होकर कहते थे कि “तुम दुनिया से बेहतर हो तो दुनिया नहीं, तुम दुनिया के बेस्त होते हो ना, अब ये घर और तुम्हारी सम्पत्ति दोगुना होता तो सभी तुम्हारी पूजा करते।”
कुछ लोग उन्हें सितमगर होकर कहते थे कि “तुम जिस परिवार से हो, उससे जयादा कभी समृद्ध नहीं था, तुम्हारे समाज में ज्यादा महत्व नहीं दिया जाना चाहिए, ये तुम्हारी गलती है।”
तिनों तरफ उन्हें बदला नजर आ रहा था। उन्होंने समाज से ज्यादा गरीबों से जुड़वाने की कोशिश नहीं की थी। कुछ समझदार लोगों ने उसे बताया कि समाज में समृद्धि के साथ-साथ समाज सेवा भी होनी चाहिए।
उन्होंने अपनी इस गलती को समझा और सभी गरीबों के लिए एक फंड बनाया। इससे वह समाज में अपनी जगह फिर से बना सकते थे।
उन्हें इससे भी ज़्यादा खुशी तभी हुई जब समाज उस छोटे से गांव की सभी गरीब लोगों की मदद करने लगा। उस परिवार ने संपत्ति को हासिल करने के बदले समाज की मदद की और उन गरीबों के लिए अधिक समय और पैसा निकाला।
अब उस घर से समृद्धि का हावा तो गांव के हर इंसान को जचा रहता था, पर उस घर में सबकुछ मौजूद होता था बस खुशी नहीं। वह घर लोगों को खुश करने वाली किसी भी बात को हैरान नहीं कर सकता था।
इस गांव में एक बच्चा रहता था, जो उस घर के साथ पल रहा था। दोनों आम दिनों में साथ खेलते थे और स्कूल में भी साथ पढ़ते थे। वे सबकुछ साझा करते थे।
पर एक दिन उस बच्चे को पता चला कि उस घर में खुशी नहीं है। वह सबसे अलग था। सबके पास उस घर के बहुत से नाम होते थे, लेकिन खुशियों का नाम नहीं।
फिर उस बच्चे ने उस घर का हाथ पकड़ते हुए पूछा, “तुम्हें इतनी सारी संपत्ति क्यों होने की ज़रूरत है, जो तुम इसे अपने आप में पूरी गर्त में डाल दो।”
पुर्वजों द्वारा दी गई संपत्ति का संस्करण लेकर वह बच्चा उसे समझाता है कि “संपत्ति टूटती नहीं है। आप ऊपर की तरफ देखो।”
फिर वह उसे घर के बाहर ले गया और उसे छोटे से कुआं में दिखाया। उसने उसे बताया कि संपत्ति की तरफ देखो। वह खुश थे क्योंकि उससे निकलते हुए पानी से उसने कुछ नई चीजें देखीं थीं।
“हम इस सबका इस्तेमाल कर सकते हैं। हम इसे कुआं से निचे ला सकते हैं और इससे ज्यादा जहाज बना सकते हैं।” फिर उसे अचानक याद आया कि असली खुशी बस सबकी मदद करने में होती है।
उसने वह घर देखा, जो कि अंदर से खाली था, लेकिन अब बेहतर लग रहा था। “संपत्ति को तुम अभी नहीं, लेकिन जो मदद करता है, वह वहीं होता है जो असली ‘समृद्धि’ का हावी होता है।”