Story Title: दूर से आया एक दोस्त
आज सुबह के समय श्याम और सहर के बीच की निकटता में एक बड़ा सड़क का एक फेफड़ेदार आवाज सुनाई देने लगा। आवाज कुछ नजदीक जाने वाला पुतला खराब होने की शिकायत कर रहा था।
“श्याम! श्याम! देखो कौन आया है!” उस आवाज को सुनते ही सहर कट्टरता से ज़ोर से चिल्लाई। भीड़ में से स्वयं श्याम भी उसपर ढकैल गया। भीड़ में से एक दीन और दुर्मिळ-सा फिगर उन्हें करीबी नजर आया।
“जिज्ञासा न कर बेहद शर्म से झेंपते हुए कहा श्याम, लता कौन आया है?”
“रोहन यादव।” कानूनी हैसियत के इस अजनबी के नाम के सामने क्षण भर को मात दे देने वाले, श्याम की ईमानदार आंखें कुछ ढाल झटका।
“रोहन?” सहर के मुँह से ऐसी दो धकेल निकली जैसे वो समाजवादी विचारधाराओं की सबसे खुराफाती पकड़ होता। एक मुखबिर के तरह प्रखर, स्पष्ट शब्दों में सहर जारी रही।
“हाँ, वो रोहन”, श्याम मेहरबान, आबोध होते हुए बताने लगा।
“अच्छा, दुनिया छोटी हो गई। उसे इतने वर्ष बाद मिलने को कौन सोचता था?” नाजुक अंगुलियों से रोहन को देखते हुए सहर विचलित हुई। इसके साथ ही रोहन ने एक तकलीफ जारी कर दी और श्याम को जोर से दबोच लिया।
“बस कर, बस।” श्याम उसे फिर से सुधारते हुए कहा, लेकिन रोहन मुस्कुराती सुनहरी कोल में दो बुराई ही सुना चाहता था। समय बितता ही गया और तीनों ने समिति के लिए एक वंदन दिया।
श्याम की त्वरित चलती कदमों से जंगली चरवाहे के बीच सबसे पहली नदी टहल गए और फिर वापस लौटने लगे। उन्होंने अपने घरों के संयोग से रोहन अपने छोटे मकान में रह रहा था। श्याम रोहन की मदद नहीं करता था, लेकिन वह उसे सम्मान देता था। रोहन चाहता था कि श्याम उसे बचाए, लेकिन वह कभी उस स्तर तक नहीं पहुँचा था। फिर भी रोहन बदल गया था। उसका मुस्कुराना और भरोसा श्याम के मन में शक्ति का संचार करता था।
“सभी दोस्तों का मैं एक बेज़ारब सदस्य हूँ।” श्याम ने बेशर्मी से कहा।
“रोहन, मैं कुछ जानता नहीं था”।
“ये बॉल किसने पकड़ा?” रोहन कुछ नहीं कहता।
“मैंने थोड़ा जोर से मारा था। इतना उसके लिए मैं बेज़ारब हो गया?” श्याम अपनी बीच से कहते हुए रोहन के मुँह में खुशी महसूस करता है।
रोहन के होंठों पर मुस्कान आ गई।
“बेज़ारब नहीं हो। सब कुछ बदल सकता है।” उसने श्याम को संबोधित करते हुए कहा और फिर दूसरी समुदाय से जुड़े अन्य विषयों पर बात करना जारी रखा।
जीवन उतावला था और संसद का विषय हो या किसी रस्ते के बैकग्राउंड के असली मुद्दे पर विचार करना हो, तीनों दोस्त कोई भी वैषम्य नहीं करते थे। अर्थात उस समय रोहन श्याम को कोई दोस्त नहीं मानता था। लेकिन अपनी मुस्कुराहट और विश्वास से, श्याम रोहन के दोस्त बन गया था। और यह उनके जीवन के उस घटना में था जब उन्होंने एक-दूसरे को दूसरी बार देखा था।
उनकी दोस्ती पारंपरिक रूप से पहली बार मिलती थी। श्याम और रोहन दो अलग-अलग विचारधाराओं, अंदाज, सीमाओं, और कई अन्य मामलों में विपरीत थे। अनेक वर्षों बाद वे दोनों अपने जीवन के इस उत्कृष्ट अंधेरे में आपस में मिलते थे। श्याम ताकि रोहन को मूर्ख न माने यह अंतर बटोरने में सक्षम रहा। रोहन की तरफ से, उसने श्याम को एक महत्वपूर्ण बात समझाई। वह यह समझता था कि अभी तक का उत्थान और उनका बाकी जीवन। कुल मिलाकर, वे एक दूसरे को विश्वास और गर्व के साथ देखते थे।
तीनों जीवन में अलग अलग स्थानों पर रहते थे। लेकिन उनके बीच की दोस्ती, एक जैसे पैर की दो उंगलियों की तरह, सदैव साथ बनी रहती थी। हर बार जब वे एक दूसरे से मिलते थे तो एक बेज़ार दिन को भी उजागर कर देती थी।
आखिरकार, रोहन के कहने की वजह से श्याम समज्हता था कि जीवन में बहुत कुछ संभव है। रोहन ने श्याम को यह सिखाया, कि वे कभी संख्या नहीं होते। वे लोग ही नहीं, जो ऑनलाइन गेम में समद्राज या खिलाड़ी होते हैं, वे सच के जीते जी होते हैं।