Story Title: विजय का राज्याभिषेक (Vijay ka Rajyabhishek)
एक बहुत समय पहले की बात है। एक छोटी सी गांव में एक गरीब परिवार रहता था। उनके पास कुछ नहीं था, सिर्फ उनके संगठनशील मनोबल था। लोगों की मदद करने का अभाव किसी भी परिस्थिति में उन्हें कभी खोने नहीं देता था। इस परिवार में एक लड़का विजय नामक था, जो बहुत ही समझदार और साहसी बच्चा था।
एक अचानक दिन, गांव में एक राजा की घोषणा होती है कि उनकी बेटी की शादी के अवसर पर एक महान योद्धा चुना जाएगा। सभी महाराजा, महारानी और योद्धा महारथी गुरु भी आते हैं। गांव के निवासियों के साथ-साथ विजय भी उस दिन के लिए तैयार हो जाता है।
गांव के सभी लोग अपने छातर और सजवट के लिए उत्साह से तैयार होते हैं। सभी मुख्य योद्धाओं को, एक खाते में सिक्के भेटे जाते हैं और उसे प्राप्त करने वाला आदमी ही महान योद्धा बनता है।
विजय के पास ऐसी संपत्ति नहीं होने के कारण अपने खाएरी संपत्ति से उन्हें खाते में सिक्के उपलब्ध कराने का अधिकार नहीं मिलता है। लेकिन, वो निराश नहीं होता है और उम्मीद और मेहनत से भरा अपने दोस्तों की टीम बनाता है।
पुरे वक्त त्यारी में लगता है, इसलिए आखिरकार महाराजा ने ये तय कर दिया है कि अगले ही दिन योद्धा चुने जाएंगे। लोग अच्छे लड़ाकू होने के लिए खुश हो जाते हैं, हालांकि बहुत कुछ विजय के मन में सवालों और चिंता के रूप में बच जाता है।
अगली सुबह तीसरे दिन नगर में, सभी लोग गुरु के पास जाते हैं और उन्हें साबित करने के लिए थोड़ा खाते का प्रदान करते हैं। विजय की टीम भी वहां पहुंचती हैं। जब वो पहुंचते हैं, गुरु ने तारों की अष्टांगिकायें मंगवाती हैं, बताने के लिए कि जो व्यक्ति एकावर्ती तथा शीर्षासीन होगा, वही व्यक्ति महान योद्धा चुना जाएगा।
हर एक व्यक्ति एकावर्ती बनाने की ओर पलटते हैं, लेकिन कई लोग गिर जाते हैं या दूसरी व्यक्ति को काट देते हैं। विजय की टीम के सदस्य भी अच्छा प्रयास करते हैं लेकिन कहीं ना कहीं रुकावट आ जाती है।
धीरे-धीरे सभी के त्रासदी बढ़ती जाती है और संख्या कम होती जाती है, सिर्फ विजय ही मुकाबला में खड़ा है। उनका मुकाबला चलता रहता है और उसे हराने में सक्षम होता जाता है। इसमें विजय के लिए सटीक ही एक अभ्यास की अवधि होती है, और वे अधिकार पर पहलाहुआ बनकररणे का समय अच्छाई तक योद्धा के साथ करते हैं। उन्होंने अपनी सभी क्षमताओं का उपयोग किया और महान योद्धा के रूप में पहला प्रकट होता है।
सभी देखने के लिए फिरसे दावाने में दौड़ने लगते हैं। इस बार भी, विजय अब अवश्यंभावी पाट नहीं होता हैं, लेकिन इस बार वहां उपस्थित चुने हुए बांधु एक वृद्ध व्यक्ति बचे हुए होते हैं जो बेहद खुश होता हैं।
खुशी से आँखों का आँसू झटपट मारता हैं। आदिकाल से आंखों के बाण भी विजय को छुड़ाने का प्रयास करते हैं, लेकिन विजय इनको सहजता से टालता हैं।
चुने हुए बापू सीने पर बाणों का शिकार होते हुए भी, खुशियों और संघर्षों के अंत में विजय का राज्याभिषेक होता हैं। लोग वहीं उन के आस-पास उस क्षण टिक जाते हैं और बधाई देते हैं।
इस कहानी से हमें यह सबक सिखाया जाता हैं की अगर हम अपने लक्ष्य पर मेहनत और संघर्ष के साथ प्रतिबद्ध रहें तो हम किसी भी परिस्थिति में उच्चारित होंगे।