Title: एक नाटक के लिए था उनका जुनून
विवेक एक आम छात्र था, जिसका प्रिय कार्य नाटक में हिस्सा लेना था। वह नाटक के प्रतियोगिता में भाग लेने जा रहा था और उसका जुनून था कि उसकी टीम जीते।
विवेक की टीम का प्रशिक्षण एक सख्त नियम बना था। तीन महीनों तक वे हर दिन सुबह उठकर, खेलते, प्रयास करते और रात में ड्रामा का संवाद लिखते थे। महेश, विवेक के टीम का नेता, कभी नहीं थकता था कि वे लड़ाई जीतें।
प्रतियोगिता के दिन दो दिन थे। विवेक और उसकी टीम ने अपनी सबसे बेहतरीन प्रदर्शन दिया था। उन्होंने एक अद्भुत और गहन उत्साहवाद से नाटक निर्माण किया था। नाटक के अंत में, पाच लोगों ने रोल निभाकर उनकी जीत की जायज़ हक़दार हो गए।
विवेक और उसकी टीम ने जीत हासिल की थी। विवेक और उसकी टीम खुश थीं क्योंकि वह विश्वास करती थीं कि वे अपना सर्वश्रेष्ठ मार्ग चुनती थीं।
पर विवेक पिछली रात अपने परिवार से बात करते हुए बहुत निराश हुआ था। उन्होंने अपने पापा से एक नयी गाड़ी के बारे में बात की थी, जिसे उन्हें खरीदना था। परन्तु उनके पापा ने उन्हें जवाब दिया कि अगली साल होली के बाद वो उन्हें गाड़ी खरीदने की जरूरत है। विवेक का उत्साह कुछ खत्म हो गया था।
उन्हें पता था कि उनके पापा के पास संभावित फंड नहीं थे, इसलिए वे नयी गाड़ी की खरीद पर इतनी सकारात्मक रवैया नहीं ला सकते थे।
विवेक उदास था, उनका पूरा मन उनकी नाटक में नहीं था। नाटक का विजेता होने का उनका सपना पूरा हो गया था। किन्तु अब कुछ फायदा नहीं होगा।
अगले दिन, विवेक अपने स्कूल के प्रिंसिपाल के पास गया। उसने प्रिंसिपाल को एक नयी पंजी के बारे में बताया, जो उन्हें अक्टूबर के महीने में दी गई थी। विवेक ने प्रिंसिपाल से गुजारा की पुस्तक की जानकारी जानी और उसके बारे में अधिक जानकारी मांगी।
विकेता चुनी जाएगी, उसे एक नए कंप्यूटर मास्टर में प्रशिक्षण दिया जाएगा, विद्यालय के लिए यह एक अच्छा अवसर था निर्माण। विवेक ने अपने दोस्तों को दीवानगी से आगाह किया और उन्हें पंजी के लिए उत्तेजित किया।
विवेक और उसकी टीम ने अब एक और नाटक का निर्माण करने के लिए ऊर्जा का उपयोग किया। इस बार उन्हें कोई दबाव नहीं था, वे उसका निर्माण अपनी मनमर्ज़ी से कर सकते थे।
विवेक और उसकी टीम ने एक बहुत ही बढ़िया नाटक का निर्माण किया था। पाच लोग ने उसमें अपने किरदार को अपनाया था और उन्होंने अपनी सभी ऊर्जा और कौशल का उपयोग करते हुए नाटक की दुर्लभ दृश्य बनाए थे। नाटक अन्तिम रुप में शानदार रूप से प्रदर्शित हुआ था।
विवेक व उसकी टीम विजेता बने थे। उन्होंने एक अविश्वसनीय नाटक निर्माण करके, इस चीज का समर्थन किया था कि अगर आप अपनी निष्ठा में कुछ करना चाहते हैं, तो आप कुछ भी कर सकते हैं।
विवेक और उसकी टीम की जीत न तो सिर्फ उन्हें आत्मिक तौर पर खुश इसलिए किया हो बल्कि उन्हें अब एक मकसद के लिए दौड़ने का उत्साह मिल गया था। उन्होंने इसका जोश किया। विवेक के पापा भी नेला पड़ा था। उन्होंने बेहद खुश हो कर देखा था कि उनके बेटे का मन कैसे ऊर्जावान हो गया था वहीं सुतराम के माँ-बाप ने उनके जीवन में एक संदेश का जो अपनाकर आगे अानेवाले अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।