Title: गुड़िया की कहानी
१० साल पहले की बात है, एक छोटे से गांव में एक बच्चा अपनी माँ के साथ बस में सफर कर रहा था। बस धीमी गति से आगे बढ़ रही थी जब उसकी नज़र एक दुकान पर जो “गुड़िया की दुकान” के नाम से जानी जाती थी, पड़ गई।
बच्चे को गुड़िया की लत से कोई बचा नहीं था, उसने माँ को सब्जी लेने कह दिया और गुड़िया की दुकान पर तथा उसके दरवाजे पर रह गया। दुकान में लाखों गुड़िया थीं उनमें से कुछ छोटी, कुछ बड़ी, कुछ आकर्षक रंगों में थीं जो बच्चों के दिलों को लूट लेती थीं।
बच्चा अपनी नज़रों के सामने इतनी सारी गुड़ियों को देखकर हैरान रह गया। उसका दिल गुड़ियों से भरता गया। उसे पता नहीं था कि उसे कौन सी गुड़िया चाहिए, क्या उसे बड़ी चाहिए थी या छोटी। बच्चे ने ढेर सारे सवालों की तारीफ के साथ अपनी माँ के पास जाकर पूछा, “माँ, मुझे कौन सी गुड़िया चाहिए?”
उसकी माँ ने मुस्कान के साथ कहा, “मेरे बेटे, घड़ी रखो और जो गुड़िया तुम्हें प्यारी लगे, वही गुड़िया तुम्हारी होगी।” बच्चा खुशी की लहर उठाते हुए फिर वही दुकान की ओर खड़ा हो गया।
उसने रातों रात की तय कर दी कि उसे सबसे प्यारी गुड़िया लेनी है। बच्चा यूँ सोचता रहा और तब उसकी नज़र ताश के पास पड़ी।
उसे देखते ही उसकी आंखों में चमक आ गई, वह गुड़िया उसकी मनपसंद थी। उसने दुकानदार से पूछा, “ये गुड़िया कितनी की है?” दुकानदार मुस्कुरा कर बोले, “यह एक खास गुड़िया है बेटा, इसका दाम तो कोई पैसा नहीं है। यह सिर्फ तुम्हारी है और यह सिर्फ तुम्हारी ही होगी।”
बच्चा वास्तव में अपनी पसंदीदा गुड़िया का दिलासा पाकर बहुत खुश हुआ। उसने गुड़िया को संभालते हुए दुकान से बाहर निकल लिया।
वह गुड़िया उसके लिए उसकी सबसे अच्छी दोस्त बन गई। उसने उसे गुड़िया के रूप में अपनाया। दोस्ती के रिश्ते में, उस बच्चे ने अपनी गुड़िया के साथ हर पल बिताने शुरू कर दिए। वह उसे सुबह उठते ही देखता, उसे स्कूल ले जाता, खिलाता, प्यार करता और रात को सोने से पहले उसके पास रखता।
वक्त बीत रहा था, गुड़िया बड़ी हो गई थी और बच्चा भी। फिर एक दिन उसे विद्यालय जाने का आदेश मिला। उसे कुछ दिन बाद शहर बाहर एक देशी चीज की दुकान में मित्र का शादी के उद्घाटन के लिए जाना था। उसने साथ में अपनी गुड़िया भी ली।
शहर में आकर बच्चा गुड़िया के साथ खुश था, वे देशी कपड़ों की दुकान में गए जहां एक सुंदर गुलावली छाया के साथ खड़ी थी। बच्चे ने गुड़िया के हाथ में लीची के पत्थर दिये और कहा, “ये देखो गुड़िया, यह आपकी खुदाई के लिए बहुत अच्छा होगा।”
उसकी उम्र के कारण, उसने गुड़िया के हाथ में पत्थर नहीं पकड़ा सकी। बच्चा मुस्करा कर गुड़िया की ओर देखता है और गुड़िया उसे देखती है, जीर्ण और पुरानी हो गई है। गुड़िया उसे शांतिपूर्ण मानों में झूलते हुए देखती है, क्योंकि वह जानती है कि उसे इसके हाथ नहीं पकड़ सकता है पर दायें या बायें में उसकी कथित कौड़ी गुदड़ी हाथों में ठीक से बचे हुए हैं।
गुड़िया की मासूमियत और छोटेपन से प्रभावित होने पर बच्चा को रट लग गया। उसने गुड़िया को समय बिताना सिखाया, उससे अपने साथ बातें की और उसे लेकर पढ़ाई करने शुरू कर दी। गुड़िया ने उसके हाथों में धीमे से पेंट मूवमेंट को पकड़ा और गुड़िया के लिए फ्लैटरर मिंट नामक कक्षा अर्ज़ किये।
बच्चा को गुड़िया की आवाज़ से उठा और उसके ऊपर लिखी गयी “गुड़िया से सोई हुई सी आवाज़” की आलोचना से घबराहट हिस में जाती है, बच्चा और उसकी मां के बीच एक खौफ पैदा हुआ, उन्होंने गुड़िया को उठाया, और उसे खेलने के लिए छोड़ दिया।
इस कहानी का संदेश है कि जीने के लिए हमेशा मानवीय धारणाएं इतनी महत्वपूर्ण नहीं होती हैं, जितना कि मिले बच्चे के पदार्थ की जाति में हैं। एक सच्चा मित्र इतना कर सकता है – जो मोहब्बत, लाचारी, वफ़ा, आदर और खुशियों का नाता होता है।